क्या प्राइवेट स्कूल जैसे चाहें वैसे बढ़ा सकते हैं फीस? जानिए किसके पास है रोकने का हक

क्या प्राइवेट स्कूल जैसे चाहें वैसे बढ़ा सकते हैं फीस? जानिए किसके पास है रोकने का हक
क्या प्राइवेट स्कूल जैसे चाहें वैसे बढ़ा सकते हैं फीस? जानिए किसके पास है रोकने का हक

हर साल नए सेशन की शुरुआत के साथ ही Private Schools Fee Hike का मुद्दा सुर्खियों में आ जाता है। देशभर के विभिन्न राज्यों में माता-पिता (पेरेंट्स) स्कूलों की मनमानी फीस बढ़ोतरी के खिलाफ प्रदर्शन करते नजर आते हैं। कहीं अभिभावकों ने शिक्षा मंत्री से मुलाकात की तो कहीं प्रशासनिक कार्यालयों के बाहर विरोध दर्ज कराया। यह सिलसिला लगभग हर शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत में दोहराया जाता है। इस बढ़ती चिंता के पीछे सबसे अहम सवाल यह है कि क्या प्राइवेट स्कूल अपनी मर्जी से जितनी चाहे उतनी फीस बढ़ा सकते हैं? क्या इसके लिए सरकारी मंजूरी की जरूरत होती है?

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Private Schools Fee Hike एक संवेदनशील मुद्दा है, जो शिक्षा और अभिभावकों की आर्थिक क्षमता दोनों से जुड़ा हुआ है। स्कूलों को अपनी सेवाएं बेहतर बनाए रखने के लिए आर्थिक संसाधनों की ज़रूरत होती है, लेकिन इसके नाम पर मनमानी बढ़ोतरी नहीं की जा सकती। इसलिए ज़रूरी है कि सभी राज्य सरकारें पारदर्शी और कठोर नियम लागू करें और निगरानी व्यवस्था को मजबूत बनाएं ताकि शिक्षा को गुणवत्ता के साथ-साथ सभी के लिए सुलभ भी बनाया जा सके।

क्या स्कूल मनमाने ढंग से फीस बढ़ा सकते हैं?

प्राइवेट स्कूलों को अपनी ऑपरेशनल कॉस्ट, स्टाफ की सैलरी, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट और एजुकेशन क्वालिटी को बनाए रखने के लिए फीस में बढ़ोतरी करने का अधिकार है। हालांकि, यह अधिकार पूरी तरह से अनियंत्रित नहीं है। राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए अलग-अलग नियम और दिशानिर्देश इस पर नियंत्रण रखते हैं ताकि स्कूलों द्वारा मनमानी बढ़ोतरी पर रोक लगाई जा सके और पेरेंट्स के हितों की रक्षा हो।

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फीस बढ़ाने का निर्णय कौन लेता है?

फीस बढ़ाने का शुरुआती प्रस्ताव स्कूल मैनेजमेंट द्वारा तैयार किया जाता है। इसके लिए वे अपनी वित्तीय आवश्यकताओं का विश्लेषण करते हैं और एक प्लान बनाते हैं। हालांकि, कई राज्यों में यह योजना तब तक लागू नहीं हो सकती जब तक कि उसे सरकार, शिक्षा विभाग या Parent-Teacher Association (PTA) की अनुमति न मिल जाए।

अलग-अलग राज्यों में फीस बढ़ोतरी को लेकर नियम

उत्तर प्रदेश

  • उत्तर प्रदेश में FEE Regulation Act, 2018 के तहत, प्राइवेट स्कूल 9.9% से अधिक फीस नहीं बढ़ा सकते। इसमें 5% सीधी फीस बढ़ोतरी और बाकी महंगाई दर (Consumer Price Index – CPI) के आधार पर बढ़ोतरी शामिल है। यदि कोई स्कूल इस सीमा से अधिक बढ़ोतरी करता है तो यह नियमों का उल्लंघन माना जाएगा।

दिल्ली

  • दिल्ली में लगभग 1,677 मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूल हैं, जिनमें से केवल 335 स्कूलों को ही फीस बढ़ाने के लिए शिक्षा निदेशालय (Directorate of Education – DoE) से अनुमति लेनी होती है। Delhi School Education Act and Rules (DSEAR), 1973 के तहत, ये नियम सिर्फ उन स्कूलों पर लागू होते हैं जो सरकारी जमीन पर बने हैं। बाकी लगभग 80% स्कूल इस निगरानी के बाहर हैं।

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  • दिल्ली हाई कोर्ट ने मई 2024 में DoE द्वारा फीस मंजूरी के निर्देश पर रोक भी लगा दी थी, जिससे निगरानी की प्रक्रिया और भी शिथिल हो गई है।

हरियाणा

  • हरियाणा में फीस वृद्धि के नियम महंगाई दर (CPI) से जुड़े हैं। यहां नियम के अनुसार, स्कूल महंगाई दर + 5% से ज्यादा फीस नहीं बढ़ा सकते। उदाहरण के तौर पर, अगर CPI 3% है तो अधिकतम 8% तक फीस बढ़ाई जा सकती है।

बिहार

  • बिहार में 2019 में लागू कानून के अनुसार, कोई भी प्राइवेट या गैर-सहायता प्राप्त स्कूल पिछले शैक्षणिक वर्ष की फीस से अधिकतम 7% तक ही बढ़ोतरी कर सकता है। Patna High Court ने इस कानून को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया है। राज्य सरकार ने इसके लिए फीस नियामक समितियों (Fee Regulatory Committees) का गठन किया है जिसमें शिक्षा अधिकारी, वित्त विशेषज्ञ और अभिभावक प्रतिनिधि शामिल होते हैं।

अभिभावकों की भूमिका और अधिकार

अभिभावकों को फीस बढ़ोतरी के खिलाफ सवाल उठाने और विरोध दर्ज कराने का पूरा अधिकार है। वे स्कूल से इसकी वजह जानने का हक रखते हैं और अगर जवाब संतोषजनक न हो तो PTA के माध्यम से या कोर्ट के माध्यम से शिकायत दर्ज कर सकते हैं। कई बार अभिभावक कानूनी उपाय भी अपनाते हैं और स्कूल मैनेजमेंट को जवाबदेह बनाते हैं।

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फीस नियामक समितियों का कार्य

बिहार समेत कई राज्यों में Fee Regulatory Committees का गठन किया गया है जो फीस की समीक्षा करती हैं और सुनिश्चित करती हैं कि किसी स्कूल द्वारा अनुचित बढ़ोतरी न की जाए। इन समितियों में शामिल प्रतिनिधि स्कूलों से उनके वित्तीय रिकॉर्ड की जांच कर यह तय करते हैं कि क्या प्रस्तावित फीस वृद्धि जायज़ है या नहीं।

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