
भगवान परशुराम जयंती (Parshuram Jayanti) को लेकर उत्तर प्रदेश में लंबे समय से सार्वजनिक अवकाश (Public Holiday) की मांग की जा रही है, लेकिन वर्ष 2025 में भी इस मांग पर कोई सरकारी घोषणा नहीं हुई है। ब्राह्मण समाज और इससे जुड़े कई सामाजिक संगठनों के लिए यह एक बार फिर निराशाजनक खबर है कि भगवान परशुराम के सम्मान में सार्वजनिक अवकाश की घोषणा नहीं की गई है। इस मुद्दे ने एक बार फिर राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दे दिया है।
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केंद्रीय मंत्री से मुलाकात में उठी छुट्टी और मूर्ति स्थापना की मांग
हाल ही में भाजपा कार्यकर्ता विजय द्विवेदी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य राज्य मंत्री जितिन प्रसाद से दिल्ली में भेंट की। इस मुलाकात में प्रतिनिधिमंडल ने भगवान परशुराम जयंती पर सरकारी अवकाश की पुरानी मांग को दोहराया। इसके साथ ही प्रयागराज में श्यामा प्रसाद मुखर्जी सेतु के पास भगवान परशुराम की आदमकद प्रतिमा स्थापित करने का प्रस्ताव भी रखा गया।
प्रतिनिधिमंडल ने इस बात पर जोर दिया कि भगवान परशुराम न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भी रखते हैं। इसलिए, उनकी जयंती को एक विशेष अवसर मानते हुए, इसे सरकारी अवकाश के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए।
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अन्य राज्यों में घोषित है अवकाश, उत्तर प्रदेश में असमंजस
जहां एक ओर उत्तर प्रदेश सरकार ने अब तक भगवान परशुराम जयंती पर कोई सार्वजनिक अवकाश घोषित नहीं किया है, वहीं कई अन्य राज्य इस दिन को राजकीय अवकाश के रूप में मान्यता दे चुके हैं।
पंजाब, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने भगवान परशुराम जयंती पर अवकाश घोषित किया है। पंजाब में इस दिन सभी सरकारी दफ्तर, स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय बंद रहेंगे। हालांकि आवश्यक सेवाएं जैसे कि अस्पताल, एम्बुलेंस सेवा, बिजली और जल आपूर्ति सुचारु रूप से चालू रहेंगी।
यह अंतर राज्यों की नीतियों में स्पष्ट करता है कि भगवान परशुराम की जयंती को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर एकरूपता नहीं है, जबकि उनका सम्मान सम्पूर्ण हिन्दू समाज में समान रूप से किया जाता है।
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भगवान परशुराम जयंती: धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
भगवान परशुराम को हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है। उनकी जयंती अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) के दिन मनाई जाती है, जो हिन्दू पंचांग में अत्यंत शुभ और फलदायक दिन माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से ब्राह्मण समाज पूजा-पाठ, भंडारे और शोभा यात्राओं का आयोजन करता है।
देशभर में कई स्थानों पर भगवान परशुराम की प्रतिमाएं स्थापित हैं और मंदिरों में विशेष पूजन-अर्चन होता है। समाज का यह वर्ग मानता है कि भगवान परशुराम एक आदर्श योद्धा, तपस्वी और धर्म के संरक्षक थे, जिनकी स्मृति में एक दिन का राजकीय अवकाश उनके योगदान को सम्मान देने का प्रतीक होगा।
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सरकारी निर्णय पर समाज में रोष और निराशा
उत्तर प्रदेश में सार्वजनिक अवकाश न दिए जाने से समाज के एक वर्ग में रोष व्याप्त है। सामाजिक संगठनों और ब्राह्मण समाज का कहना है कि राज्य सरकार इस मांग को लगातार नजरअंदाज कर रही है, जबकि यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकार का प्रश्न है।
सवाल यह उठता है कि जब अन्य राज्यों में यह संभव है, तो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में इसे क्यों नहीं अपनाया जा रहा? क्या यह सामाजिक प्रतिनिधित्व की कमी का संकेत है या फिर किसी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा?
भविष्य की राह: क्या सरकार बदलेगी रुख?
अब निगाहें राज्य सरकार की आगामी प्रतिक्रियाओं पर टिकी हैं। क्या राज्य सरकार इस मांग को स्वीकार करेगी और भविष्य में भगवान परशुराम जयंती पर अवकाश की घोषणा करेगी? या यह मुद्दा फिर से केवल प्रतिनिधिमंडलों की मांगों और ज्ञापनों तक ही सीमित रह जाएगा?
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में इस मुद्दे को एक चुनावी वादा या जनभावनाओं को प्रभावित करने वाले विषय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।