इस्लामिक बैंक का अनोखा सिस्टम! न ब्याज लेते हैं, न देते – जानिए पैसे कमाने का पूरा मॉडल

इस्लामिक बैंक का अनोखा सिस्टम! न ब्याज लेते हैं, न देते – जानिए पैसे कमाने का पूरा मॉडल
इस्लामिक बैंक का अनोखा सिस्टम! न ब्याज लेते हैं, न देते – जानिए पैसे कमाने का पूरा मॉडल

Islamic Banking and Finance एक ऐसा बैंकिंग मॉडल है जो पूरी तरह से ब्याज यानी रिबा से मुक्त होता है। जबकि पारंपरिक बैंकिंग सिस्टम की नींव ही ब्याज पर टिकी होती है, इस्लामिक बैंकिंग शरिया कानून (Sharia Law) पर आधारित होती है, जो ब्याज को हराम मानता है। यही वजह है कि इस्लामिक बैंकिंग में ब्याज ना लिया जाता है और ना ही दिया जाता है। इसके बावजूद यह प्रणाली आज एक मजबूत और तेजी से बढ़ती फाइनेंस इंडस्ट्री बन चुकी है।

इस्लामिक फाइनेंस इंडस्ट्री का तेजी से विस्तार

इस्लामिक फाइनेंस इंडस्ट्री की शुरुआत करीब 30 साल पहले हुई थी और आज यह एक 3.96 ट्रिलियन डॉलर का विशाल वैश्विक उद्योग बन चुका है। इसमें लगभग 1,650 से अधिक शरिया-अनुपालक फाइनेंशियल संस्थाएं शामिल हैं। वर्ष 2023 की स्टेट ऑफ ग्लोबल इस्लामिक इकोनॉमी रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2026 तक इसकी कुल संपत्ति बढ़कर 5.95 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। यह इंडस्ट्री सिर्फ मध्य पूर्व या दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका और एशिया के कई गैर-मुस्लिम देशों में भी तेजी से फैल रही है।

ब्याज पर पूर्ण प्रतिबंध

इस्लामिक बैंकिंग की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें ब्याज (Interest) को पूरी तरह से प्रतिबंधित किया गया है। इस्लामिक बैंक न तो ग्राहकों से ब्याज लेते हैं और न ही उन्हें ब्याज देते हैं। यह पूरी व्यवस्था न्यायपूर्ण व्यापार और जोखिम-साझेदारी (Risk Sharing) के सिद्धांतों पर आधारित होती है।

इस्लामिक बैंकिंग में आय कैसे होती है?

जब पारंपरिक बैंक ब्याज पर लोन देकर कमाई करते हैं, वहीं इस्लामिक बैंकिंग एक अलग मॉडल अपनाती है। उदाहरण के तौर पर, यदि कोई ग्राहक कार खरीदने के लिए लोन लेना चाहता है, तो इस्लामिक बैंक उस कार को खुद खरीदता है और फिर ग्राहक को लीज (Ijara) पर देता है या किश्तों में बेचता है। इस तरह बैंक उस सामान की मूल लागत से अधिक कीमत पर बिक्री करके या लीज की रकम से प्रॉफिट (Profit) कमाता है।

प्रमुख फाइनेंसिंग मॉडल: इजारा और मुरबाहा

इजारा (Ijara) या लीजिंग एक प्रमुख इस्लामिक फाइनेंस मॉडल है जिसमें बैंक वस्तु को खरीदकर ग्राहक को किराए पर देता है। लीज की अवधि पूरी होने पर वह वस्तु ग्राहक को ट्रांसफर कर दी जाती है।

वहीं, मुरबाहा (Murabaha) एक अन्य मॉडल है जिसमें बैंक कोई वस्तु ग्राहक के लिए खरीदता है और फिर एक तय प्रॉफिट मार्जिन के साथ उसे बेच देता है। यह प्रॉफिट मार्जिन पहले से तय होता है और यह ब्याज नहीं होता।

किन कार्यों के लिए नहीं मिलता लोन

इस्लामिक बैंकिंग में नैतिकता को विशेष महत्व दिया जाता है। इसलिए वे किसी भी ऐसे कार्य के लिए फंडिंग नहीं करते जो इस्लामिक शरिया के अनुसार हराम हो। जैसे:

  • शराब उत्पादन या बिक्री
  • सुअर पालन
  • हथियार निर्माण
  • जुए या सट्टेबाज़ी से जुड़ी गतिविधियाँ

इस्लामिक फाइनेंस के आधुनिक संदर्भ में महत्व

दुनिया भर के निवेशक अब इस्लामिक फाइनेंस को सिर्फ एक धार्मिक विकल्प नहीं, बल्कि एक वैकल्पिक और स्थायी फाइनेंशियल मॉडल के रूप में देख रहे हैं। ग्रीन फाइनेंस, रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) प्रोजेक्ट्स और नैतिक निवेश (Ethical Investment) में इस्लामिक बैंकिंग की भूमिका बढ़ती जा रही है।

ग्लोबल फाइनेंस में इस्लामिक बैंकिंग की स्थिति

आज इस्लामिक बैंकिंग सिस्टम कई बड़े ग्लोबल वित्तीय केंद्रों में भी स्थापित हो चुका है। ब्रिटेन, जर्मनी, अमेरिका, मलेशिया, इंडोनेशिया और UAE जैसे देशों में इस्लामिक बैंकिंग को सरकारों का समर्थन भी प्राप्त है। इन देशों में कई पारंपरिक बैंक भी अब शरिया कंप्लायंट विंग्स चला रहे हैं।