
आज के डिजिटल युग में यूपीआई-UPI ने पैसों के लेन-देन को बेहद आसान बना दिया है। चाहे छोटे दुकानदार से खरीदारी हो या बड़े ऑनलाइन ट्रांजैक्शन, Unified Payments Interface की मदद से कैश रखने की जरूरत अब काफी हद तक खत्म हो गई है। हालांकि, इस डिजिटल सुविधा के साथ कुछ नियम और सीमाएं भी जुड़ी हुई हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है। खासतौर पर इनकम टैक्स विभाग द्वारा तय किए गए नियमों की जानकारी न होना भविष्य में बड़ी परेशानी बन सकती है।
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इनकम टैक्स नियम और यूपीआई ट्रांजैक्शन की सीमा
इनकम टैक्स अधिनियम की धारा 269ST के अनुसार, कोई भी व्यक्ति एक दिन में 2 लाख रुपये से अधिक का लेन-देन नहीं कर सकता, चाहे वह कैश में हो या डिजिटल पेमेंट जैसे यूपीआई के माध्यम से। इस नियम का उद्देश्य अवैध लेन-देन, मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी को रोकना है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि यह सीमा एकमुश्त भुगतान या कई बार में किए गए भुगतान दोनों पर लागू होती है। यदि एक ही व्यक्ति से 2 लाख रुपये से अधिक की राशि ली जाती है, तो यह नियम का उल्लंघन माना जाएगा।
ट्रांजैक्शन लिमिट का उल्लंघन: क्या हो सकता है असर
अगर कोई व्यक्ति या संस्था इस सीमा से अधिक ट्रांजैक्शन करता है, तो इनकम टैक्स विभाग की नजर में आ सकता है और उसे नोटिस भेजा जा सकता है। यह नोटिस कर चोरी या गलत तरीके से पैसे के लेन-देन की आशंका के आधार पर भेजा जा सकता है।
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इसलिए जरूरी है कि कोई भी बड़ी राशि लेने या देने से पहले उसके दस्तावेज, रसीद या बिल मौजूद हो, ताकि भविष्य में किसी भी तरह की जांच या पूछताछ में आप उसे दिखा सकें।
कौन से सेक्शन लागू होते हैं ट्रांजैक्शन पर
इनकम टैक्स अधिनियम में केवल 269ST ही नहीं, बल्कि अन्य सेक्शन भी हैं जो पेमेंट और ट्रांजैक्शन को नियंत्रित करते हैं:
- सेक्शन 40A(3): यह सेक्शन बिजनेस पेमेंट पर लागू होता है। यदि कोई व्यवसायी 10,000 रुपये से अधिक की कैश पेमेंट करता है, तो वह खर्च टैक्स में डिडक्ट नहीं किया जा सकता।
- सेक्शन 269SS: इसके तहत कोई भी व्यक्ति 20,000 रुपये से अधिक की कैश उधारी नहीं ले सकता।
- सेक्शन 269ST: जैसा ऊपर बताया गया, इसमें 2 लाख रुपये से अधिक की कैश प्राप्ति पर रोक है।
यूपीआई ट्रांजैक्शन: क्या है लीगल स्थिति?
हालांकि यूपीआई एक डिजिटल माध्यम है, फिर भी यह नियमों के दायरे में आता है। यदि एक ही दिन में किसी एक व्यक्ति से 2 लाख रुपये से ज्यादा यूपीआई ट्रांजैक्शन होती है, तो इनकम टैक्स विभाग इसे भी जांच के दायरे में ले सकता है। इसलिए चाहे पेमेंट कैश में हो या डिजिटल, पारदर्शिता और प्रमाण जरूरी है।
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लेन-देन में पारदर्शिता क्यों है जरूरी?
इनकम टैक्स नोटिस से बचने के लिए जरूरी है कि आप हर ट्रांजैक्शन का लेखा-जोखा रखें। किसी भी बड़े वस्तु जैसे कार, जमीन, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि की खरीद-फरोख्त में ट्रांजैक्शन से संबंधित बिल, भुगतान की रसीद या बैंक स्टेटमेंट जरूर रखें। इससे न केवल कानूनी सुरक्षा मिलेगी, बल्कि आप आयकर विभाग की किसी भी जांच से आसानी से बच सकेंगे।
डिजिटल ट्रांजैक्शन और नए भारत की तस्वीर
भारत में डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए सरकार लगातार नए कदम उठा रही है। UPI, नेट बैंकिंग, डेबिट/क्रेडिट कार्ड जैसे माध्यमों से अब अधिकतर भुगतान हो रहे हैं। इससे न केवल लेन-देन में पारदर्शिता आई है, बल्कि भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगी है।
वहीं, सरकार और इनकम टैक्स विभाग इस बात का भी ध्यान रख रहे हैं कि डिजिटल ट्रांजैक्शन का गलत इस्तेमाल न हो। इसलिए नए नियम और गाइडलाइंस लाकर इसे सुरक्षित और पारदर्शी बनाने की कोशिश की जा रही है।
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भविष्य में क्या होंगे बदलाव?
टेक्नोलॉजी के साथ-साथ सरकार भी नियमों में समय-समय पर बदलाव करती है। इसलिए जरूरी है कि लेन-देन से जुड़े किसी भी नियम की जानकारी समय-समय पर अपडेट लेते रहें। खासतौर पर Startup, IPO, Real Estate, Renewable Energy जैसे सेक्टर्स में काम करने वालों को इन नियमों की विशेष जानकारी होनी चाहिए क्योंकि इन क्षेत्रों में बड़ी राशि के लेन-देन आम बात है।