
घर खरीदने का सपना हर किसी का होता है, और इसे पूरा करने में होम लोन (Home Loan) एक अहम भूमिका निभाता है। लेकिन जब भी हम होम लोन लेने की योजना बनाते हैं, तो सबसे पहले जो सवाल मन में आता है, वह है ईएमआई-EMI कितनी होगी और बैंक इसे तय कैसे करता है? EMI यानी Equated Monthly Installment, वह राशि होती है जो आप हर महीने अपने लोन की किश्त के तौर पर बैंक को चुकाते हैं। यह जानना बेहद जरूरी है कि बैंक इस EMI को तय करने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखता है।
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EMI तय करने में ब्याज दर और लोन की अवधि की भूमिका
EMI की गणना करने में सबसे अहम भूमिका ब्याज दर (Interest Rate) और लोन की अवधि (Loan Tenure) निभाते हैं। ब्याज दर जितनी ज्यादा होगी, EMI उतनी ही ज्यादा होगी। वहीं, लोन की अवधि जितनी लंबी होगी, EMI उतनी कम होती है लेकिन कुल ब्याज का भुगतान ज्यादा करना होता है।
उदाहरण के लिए, अगर आपने ₹30 लाख का होम लोन 20 साल की अवधि के लिए 8% सालाना ब्याज दर पर लिया है, तो आपकी मासिक EMI लगभग ₹25,093 होगी। लेकिन यही लोन अगर आप 15 साल में चुकाना चाहते हैं, तो EMI बढ़कर ₹28,668 हो जाएगी।
बैंक किन बातों के आधार पर तय करता है EMI?
बैंक EMI तय करने से पहले आपकी वित्तीय स्थिति और जोखिम को परखता है। इसके लिए कई मानकों का इस्तेमाल किया जाता है:
क्रेडिट स्कोर (Credit Score)
- आपका क्रेडिट स्कोर यह दर्शाता है कि आपने पहले लिए गए कर्जों को कैसे चुकाया है। अगर आपका CIBIL स्कोर 750 से ऊपर है, तो आपको कम ब्याज दर पर लोन मिलने की संभावना अधिक होती है, जिससे EMI कम बनती है।
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मासिक आय (Monthly Income)
- बैंक यह सुनिश्चित करता है कि आपकी आय इतनी हो कि आप EMI समय पर चुका सकें। आमतौर पर आपकी EMI आपकी मासिक आय का 40-50% से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
मौजूदा कर्ज (Existing Liabilities)
- अगर पहले से आपके ऊपर कोई कर्ज चल रहा है, तो यह भी आपकी EMI तय करने में अहम भूमिका निभाता है। ज्यादा कर्ज होने पर बैंक आपको नया लोन देने में झिझक सकता है या EMI ज्यादा हो सकती है।
लोन की राशि (Loan Amount)
- जितनी ज्यादा लोन राशि होगी, उतनी ज्यादा EMI होगी। साथ ही, डाउन पेमेंट (Down Payment) जितना ज्यादा होगा, EMI उतनी कम होगी क्योंकि लोन की राशि कम हो जाएगी।
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फ्लोटिंग और फिक्स्ड ब्याज दर का EMI पर असर
बैंक दो तरह की ब्याज दरों पर लोन देता है—फ्लोटिंग (Floating) और फिक्स्ड (Fixed)। फ्लोटिंग रेट समय के साथ बदलती रहती है जबकि फिक्स्ड रेट एक तय दर पर रहती है।
अगर आपने फ्लोटिंग रेट पर लोन लिया है और मार्केट में ब्याज दर घटती है, तो आपकी EMI कम हो सकती है। वहीं, फिक्स्ड रेट में EMI स्थिर रहती है लेकिन ब्याज दर बढ़ने पर आपको फायदा नहीं मिलता।
EMI की गणना का फॉर्मूला
EMI की गणना का एक तय फॉर्मूला होता है:
EMI = [P x R x (1+R)^N] / [(1+R)^N-1]
यहां,
P = लोन की राशि
R = मासिक ब्याज दर (वार्षिक ब्याज दर/12/100)
N = कुल महीनों की संख्या (Loan Tenure in Months)
आप ऑनलाइन EMI Calculator का इस्तेमाल करके भी यह गणना आसानी से कर सकते हैं।
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प्रीपेमेंट और EMI पर उसका असर
अगर आप लोन की अवधि के बीच में कोई अतिरिक्त राशि चुकाते हैं (प्रीपेमेंट), तो इससे EMI पर असर पड़ सकता है। इससे या तो आपकी EMI घट सकती है या फिर लोन की अवधि कम हो सकती है।
कुछ बैंक इस पर प्रीपेमेंट चार्ज भी लगाते हैं, खासकर फिक्स्ड रेट लोन में। इसलिए लोन लेने से पहले इसकी शर्तें जरूर जान लें।
लोन चुकाने में देरी के असर
अगर आप EMI का समय पर भुगतान नहीं करते हैं, तो बैंक पेनल्टी चार्ज कर सकता है। साथ ही, यह आपकी क्रेडिट हिस्ट्री को नुकसान पहुंचा सकता है जिससे भविष्य में लोन लेना मुश्किल हो सकता है।
इसलिए EMI का समय पर भुगतान बेहद जरूरी है।
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लोन लेते समय इन बातों का रखें ध्यान
- लोन लेते समय पूरी तरह से ब्याज दर, प्रोसेसिंग फीस, प्रीपेमेंट शर्तें आदि को समझें।
- EMI Calculator से पहले ही पता करें कि आपकी मासिक किस्त कितनी होगी।
- अपनी वित्तीय स्थिति के अनुसार ही लोन लें ताकि आगे दिक्कत न हो।
- अगर संभव हो, तो ज्यादा डाउन पेमेंट करें ताकि लोन की राशि और EMI दोनों कम हों।